समाज का कड़वा सच-8

सेहरे शादी सपने और, मंजर भी देखा मौत का, सबसे अलग न्यारा रिशता, मिला तो वह दोस्त था, ना कुछ देना मिलना, और न कुछ चाह थी, चोट जो लगती जरा सी भी, निकलती पहले उसकी आह थी, बेशक जीता होगा मुझे, इस दुनिया की खातिर, कोशिश करूँगा ए दस्त मेरे, संभल जाओ, चाहे अब मिले रिशते, कितने ही शातिर..........

बहुत देर सोचने विचारने के बाद मैंने देखा कि सामने वाले घर में फिर से हलचल शुरु हो गई , और इस बार सबकी परेशानी की वजह यह थी , कि भीरु के नाम का रखा हुआ खाना , अभी तक किसी भी पक्षी ने छुआ तक नहीं और जब तक कोई पक्षी उसे गृहण न कर ले , भीरू का बड़ा लड़का कुछ खा नहीं सकता , ऐसा उसे बुजुर्गों ने बताया ...... और शायद इसी बात पर वह आधुनिकता को बाहना बना , उसी बुजुर्गों से जा भीड़ा कि भला इस जमाने में भी क्या ऐसा होता है ,,,,,,,और चूंकि बुजुर्ग भी कोई सामान्य नहीं थे , इसीलिए उन्होंने उस लड़के को जोरदार फटकार लगाई , जिस बात को लेकर फिर घर की महिलाओं में बहस हो गई ,

अंत में पूरा बुजुर्गों समुदाय उस महिला को निशाना बना कर बोला , जब आकर खाना मांग रहा था , तब तो तुम प्रॉपर्टी के कागज ढूंढ रहे थे , अब तो बड़ी चिंता दिखा रहे हो , मानना है तो मानों और यदि नहीं मानते हो तो हमसे नियम क्यों पूछते हो ..... अपने - अपने बच्चों को बोल दो , कि अंतिम क्रिया वगैरह कुछ नहीं होता , सीधे लाश को जलाकर छोड़ आये और सब भूल जाये , कि इसके आगे भी कोई कर्म करना है , भाई हमें जो बताया गया , और जो हमने किया , और वही शास्त्रों में भी लिखा है , अब इसके आगे , मानना या न मानना तुम लोगों की मर्जी ।

          और शायद इसी कारण  बड़ा लड़का अनमना सा होकर रूठ कर बैठा हुआ था ,जो मुझे बिल्कूल भी अच्छा नहीं लगा , और मैं भी  छत से उतरकर उसके घर जा पहुंचा , और जैसे ही मैं उसके घर पहुंचा , एक कौवा लपककर सीधे मेरे बाजुओं को छूते हुए ,जाकर खाने के समीप बैठ आवाज करने लगा ।
           मुझे ऐसा लगा , जैसे वह मेरा ही इंतजार कर रहा हो । और सबसे बड़ी राहत की सांस ली , और कौवा छत पर एक पूरी उठाकर ले गया, तब तो तुरंत उसका बड़ा लड़का  बैठिये अंकल बोलता हुआ , बड़ी सजगता के साथ मारे खुशी के तुरंत मेरे लिए आसन ले आया ,और एक लड़के को ईशारा कर दोनों के लिए खाना लगाने को कहा ।

     वास्तव में भूख उसे ज्यादा लगी थी , लेकिन मेरी उपस्थिति में वह अकेला खा नहीं सकता था ,इसीलिए उसने शायद मुझे भी साथ बुलाना ही उचित समझा ।
      यह देख मुझे हँसी आ गई ,और क्रोध भी आया कि आज उसे मात्र कुछ क्रियाकर्म भी इतने भारी लग रहे हैं , जिसकी खातिर भीरु न जाने कितने दिन भूखा भटका हो , और कितनी रात जागा था ......
             मुझे अच्छे से याद है , कि इसी बच्चे के खातिर कॉलेज का एक फॉम लाने  के लिए भीरु और मैं खुद नाईट शिफ्ट करने के बाद भी पचास किलोमीटर दूर साइकिल चलाकर गये थे । और पैसे के अभाव में सिर्फ फॉम खरीदकर महज एक -एक कप चाय और एक बिस्किट के पैकेट में पूरा दिन गुजारा , फिर नहीं बमुश्किल दोपहर तक लाइन में लगे रहने के बाद हमें इसका एडमिशन फॉम मिला था ।

           और फिर आकर नौकरी करनी थी , इसलिए साईकिल से उतना ही किलोमीटर न चलना पड़े , इसलिए छोटे रास्ते से नदी पार करने के दौरान भीरु फिसलकर गिर भी गया था , जिसके कारण उसने कंधे में चोट आई.....

लेकिन फिर भी वह लगातार बिना कोई छुटटी लिये देशी दवाइयों ने भरोसे काम करता रहा , ताकि इस महीने की सैलरी कहीं कम न बने, और वह बेटे का एडमिशन उसी कॉलेज में करवा सके ।

क्रमशः.....

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